धरकार समाज की उपेक्षा: सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में आरक्षण का फैसला एक नई उम्मीद
प्रस्तावना:भारतीय लोकतंत्र में आरक्षण की व्यवस्था वंचित तबकों को बराबरी का अवसर देने के लिए की गई थी। लेकिन अफसोस की बात यह है कि अनुसूचित जातियों के भीतर भी कुछ जातियां आरक्षण का पूरा लाभ उठाने में सफल रहीं, जबकि धरकार समाज जैसे कई समाज आज भी सामाजिक, राजनीतिक, और शैक्षिक अवसरों में पीछे हैं। बहुजन समाज पार्टी , समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों ने दशकों से इन समाजों का वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन उन्हें कभी भी राजनीतिक नेतृत्व का हिस्सा नहीं बनने दिया। सुप्रीम कोर्ट का हालिया "आरक्षण में आरक्षण" का फैसला इस असमानता को दूर करने का एक साहसिक कदम है, और इसका स्वागत होना चाहिए।
धरकार समाज की वंचना:
धरकार जाति, जो अनुसूचित जातियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, आज भी सामाजिक और आर्थिक प्रगति के मामले में काफी पीछे है। शिक्षा के क्षेत्र में उनके प्रतिनिधित्व की स्थिति दयनीय है, और सरकारी नौकरियों में उनकी भागीदारी नगण्य है। और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करें, तो वह तो मानो धरकार समाज के लिए एक सपने जैसा ही है। यही कारण है कि समाज के भीतर गुस्सा और आक्रोश है।
बहुजन समाज पार्टी, जिसने दलितों के हक और अधिकारों की रक्षा का वादा किया था, धरकार समाज को केवल चुनाव के समय वोट लेने के लिए इस्तेमाल करती रही है। चुनावी प्रचार के दौरान इस समाज के लोगों से वोट मांगे जाते हैं, लेकिन जब नेतृत्व में प्रतिनिधित्व देने की बात आती है, तो इन्हें दरकिनार कर दिया जाता है। यही कारण है कि अब धरकार समाज के कई कार्यकर्ता, जो वर्षों से इस पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे, आज इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं। उन्हें यह समझ में आ गया है कि सिर्फ वोट देने से उनके समाज का भला नहीं होगा, जब तक कि उन्हें राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं दी जाती।
विरोधियों पर कटाक्ष:
जो दल और नेता धरकार समाज से वोट मांगने में सबसे आगे रहते हैं, वे यह नहीं समझते कि धरकार समाज अब जागरूक हो चुका है। ये लोग अब केवल वोट बैंक नहीं रहे, बल्कि अपने हक और अधिकार के लिए लड़ने को तैयार हैं। यही कारण है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में आरक्षण का ऐतिहासिक फैसला सुनाया, तो धरकार समाज जैसे वंचित वर्गों को एक नई उम्मीद मिली। लेकिन इसके विरोध में कुछ ऐसे राजनीतिक दल और नेता खड़े हैं, जिन्होंने हमेशा से इन समाजों की उपेक्षा की है। उन्हें डर है कि अब आरक्षण का लाभ वास्तव में उन लोगों तक पहुंचने लगेगा, जो असल में इसके हकदार हैं, और उनके पुराने राजनीतिक समीकरण ध्वस्त हो जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में आरक्षण का फैसला करते हुए इस बात को प्रमुखता से रेखांकित किया कि आरक्षण का असली मकसद तभी पूरा हो सकता है, जब वंचित तबकों के भीतर भी सबसे पिछड़े समूहों को प्राथमिकता मिले। धरकार जैसी जातियां, जो अनुसूचित जातियों के भीतर भी सबसे वंचित हैं, अब तक आरक्षण का सही लाभ नहीं उठा पाईं। यह फैसला सुनिश्चित करेगा कि ऐसे समाजों को अब सही प्रतिनिधित्व मिले, चाहे वह शिक्षा हो, सरकारी नौकरियां हों, या राजनीतिक क्षेत्र।
कानूनी और राजनीतिक दृष्टिकोण:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 46 (कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों की रक्षा) के मूल्यों को सुदृढ़ करता है। यह न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि आरक्षण का वास्तविक उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब इसके लाभ असल में उन तक पहुंचेंगे, जो आज भी समाज के सबसे कमजोर वर्गों में हैं। जो लोग इस फैसले का विरोध कर रहे हैं, वे दरअसल अपने विशेषाधिकारों को बचाने के प्रयास में हैं, ताकि धरकार जैसी जातियों को राजनीतिक और शैक्षिक हिस्सेदारी से वंचित रखा जा सके।
**निष्कर्ष:**
धरकार समाज और अन्य वंचित जातियां, जो आज भी सामाजिक, शैक्षिक, और राजनीतिक अवसरों से वंचित हैं, उन्हें सशक्त बनाने की जरूरत है। राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि इन समाजों की आवाज़ अब अनसुनी नहीं की जा सकती। यह समाज अब जागरूक हो चुका है, और वे अपने हक के लिए लड़ने को तैयार हैं। आरक्षण में आरक्षण की यह मांग न केवल न्यायसंगत है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की वास्तविकता को स्थापित करने का एक आवश्यक कदम भी है। विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं की आवाज़ दरअसल उस अन्याय के खिलाफ विद्रोह है, जो वर्षों से उनके साथ किया जा रहा है।
आज समय आ गया है कि धरकार समाज को केवल वोट बैंक समझने की जगह, उन्हें वास्तविक राजनीतिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व दिया जाए। यही लोकतंत्र की असली जीत होगी, और यही सामाजिक न्याय की सच्ची परिभाषा।
विवेक कारुष ।
---
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें