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इलाबाद मीटिंग का विश्लेषण






एक भुल !



विश्लेषण इलाहाबाद मीटिंग का

       गलतियों से सिखकर  बेहतर परिणाम पाने के लिये  हर घटना पर रिसर्च होता। 

      आज हम एक घटना के मूल तक जाने का प्रसास करेंगे !

         9 sep 2018, इलाहाबाद धरकार समाज के लिये एक बहुत बडा ऐतिहासिक दिन जिसके अच्छे- बुरे हर पहलू पर,  ना जाने हर घर मे कितने दिनो इसपर  चर्चा विमर्ष होता रहेगा।


      किसी निष्कर्ष पर निकलने से पहले केंद्रीय कमिटी की माँग क्यो की गई ? क्यो जरूरी यह जानना बहुत जरूरी है।


         जिस तरह एक डॉक्टर जब तक बीमारी को पकड़ नही लेता तब तक उसका पूरी तरह  इलाज नही कर सकता।
    हाँ कुछ समय के लिये paracetamol ,  nice, syrup और सलाइन से  राहत देने का प्रयास तो किया तो जा सकता है किंतु व्यक्ति को पूर्ण स्वस्थ कभी नही किया जा सकता।


समाज में मौजूदा संगठनो  की स्तिथि


1)  समाज मे कहीं सगठनों का बनना।

2) सभी कि अपनी अपनी कार्यप्रणाली ।

3) आपस मे ताल मेल ना होना।

4 )  चाहत की बाकी संगठन मेरे साथ चले क्योकि मेरी नीति ही सर्वश्रेष्ठ

नतीजा एक सयुक्त संगठन , एक कार्यप्रणाली, ताल मेल , सब साथ  चले और सभी श्रेष्ठ है का ना होना जिसका खामियाजा समाज की एकता पर पड़ रहा है ।

और इसका एक ही उपाय था सभी आपस मे बैठ कर चर्चा विमर्ष करे एक साझा नीति के तहत केंद्रीय टीम को बनाये।


"जी चर्चा , विमर्ष और बातचीत ही एक मात्र रास्ता था । "


9 sep 2018 इलाहाबाद में सभी संगठनो के 10 -10 मेम्बरों  को बात चीत के लिये मीटिंग बुलाया गया। 

1 ) यह सम्मेलन नही मीटिंग था।

2) सभी संस्थाओ से बात चीत कर एक आम सहमति बनाया जाना था।

3) सभी को लेकर केंद्रीय टीम बनाया जाना था।

4) मेरे साथ चलने की चाहत को छोड़कर सभी को साथ चलना था।

5) जो भी करना था सर्व सहमति व सबके समक्ष करना था।

8 sep को रात 7:30 बजे 9 संस्थाओ के लोग चर्चा विमर्ष कर एक सहमति बनाते है।


एक बिंदु पर सहमति नही बन पाती जिसपर भी दूसरे दिन चर्चा करनी थी।


"किन्तु अंत D.B ने एक भूल कर दी साफ साफ कह दिया जो अभी सहमति बनाइ गई है वह मान्य नही होगा।" 

9 sep सुबह 10 बजे कार्य क्रम की शुरुआत होती है। कल की 9 संस्थाओ के सहमति के विपरीत आज साथ ही आज  आये हुवे सभी श्रेष्ट , वरिष्ठ व 13 संस्थाओ के साथ बात चीत , चर्चा विमर्ष ना करते हुवे सीधे वोटिंग का फैसला लिया गया ।

यह निर्णय एक भूल थी !


जो  मुल सिद्धांत के विपरीत था। 13 संगठनो के वरिष्ठ के साथ बात चीत कर सहमति बनाने को छोड़कर सीधे चुनाव
क्या बिना चर्चा विमर्ष आपसी सहमति के आयोजको द्वारा चुनाव का निर्णय भूल था ।

यह मीटिंग सर्फ अध्यक्ष का चुनाव के लिये नही था। बल्कि सभी संस्था से चर्चाकर सबकी भागेदारी से केंद्रीय टीम बनाया जाना था।


वोटिंग अभी शुरू ही हुई यह SB जिद्द में भूल कर बैठे की वोटिंग हर कोई करेंगा । जो पूर्व निर्धारित नियम के खिलाफ था । क्योकि सहमति ना बनने पर चुनाव की स्तिथि में स्थानीय जनता की ज्यादा संख्या होना चुनाव के नतीजे पर असर कर सकती थी।

इसीलिये हर संगठन से 10 ही उचित था।

SB हंगामा कर बहिष्कार करने  की भुल कर दी।

क्या M का 3 वोट कम मिलने पर मतदाता पर्ची लिस्ट माँगना भूल था ?

क्या लिस्ट ना दिखाकर वहाँ से चले जाना भूल था ?

क्या इसपर SD का क्रोधित होना भूल था ?

क्या 13 संस्थाओ ने  भूल किया जिन्होंने एक बार भी नही पूछा की बिना चर्चा के सीधा चुनाव क्यो ?

जब 2 महीनों से आह्वाहन किया जा रहा है सम्मेलन नही मीटिंग है सिर्फ 10 लोगो को आना है चर्चा करेंगे तो आज क्या हो गया ?


  भूल किसकी थी यह आप सभी स्वयं चिंतन करे।

       "एक बात तो सच है इसके बाद हम सभी ने अपने उस गुण पर  स्वयं सरकारी मुहर लगा दी । कि जो सभी हमारे बारे में सोचते है वह गलत नही वह सच सोचते है ?" 

इस भूल का नतीजा क्या हुवा ?

जहाँ थे वही आज भी है बस किताब का कवर बदल गया।
हम हों गए कामयाब कहने के बजाय हम होंगे कामयाब कहने को मजबूर हो गए।


पहले भी जिनके साथ हमारा गठबंधन था आज भी वही  साथ है।

दीवार को मिट्टी की थी अब इट की हो गई।

इतिहास गवाह है चर्चा बात चीत ही एकमात्र उपाय है जिसमे बर्लिन जैसी दीवार तक को गिरा एक सशक्त जर्मनी बना दिया।

जिन्हें चर्चा में आना था वो आकर चले गए लखनऊ में चुप थे तो भी बदनाम हुवे। इलाहाबाद में बोल कर भी बदनाम हुवे।

अब देखना है जिनकी जिम्मेदारी बन गई है वह इस दीवार को ढहाते है उँचा करते है ?


Paracetamol, syrup , सलाइन लगा कर कुछ देर राहत तो दे सकते है किंतु स्वस्थ नही कर सकते।

इन सबके बीच एक बात अच्छी हुई संगठनो मे मन मे संयुक्त रूप से कार्य करने की इक्छा जागृत हुई।

केंद्रीय टीम का गठन हुवा अब भविष्य ही बताएगा  एक केंद्रीय टीम एक बनी या कई ?


   एक बात तो 100% सच है जब भी मूल सिद्धांत को छोड़कर प्रयोग किया जाता है तो उस कार्य का संतुलन बिगड़ ही जाता है।

  

टिप्पणियाँ

  1. हमारे पास मात्र प्रतीक्षा के अलावा और कोई उपाय नही है

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  2. विवेक सरजी आपकी निष्पक्षता का मैं कायल हूँ, जिस तरह से आपने इस मीटिंग का चुनवींप्रक्रिया का विश्लेषण किया वो सराहनीय. इस मे मैं मैं एक बात और ऐड करना चाहूंगा कि ये मीटिंग सिर्फ एक तरफ कुछ पूर्वनिर्धारित सोच के साथ रखा गया 8सितम्बर की सारी बाते धूस कर दी गयी।

    इस धन्धाली में गोरखपुर की टीम का पूर्ण रूप से हाथ है और मीटिंग के प्रायोजक इलाहाबाद की टीम इसकीं मूक समर्थक रही। खेद है आपका और हमारा ये समाज को एक मंच पे लेन का प्रयास निष्फल रहा . यहाँ तक कि PP जी ने कमिटी से एक बार भी नहीं कहा कि सत्यापन कर दे, और इस प्रक्रिया को और समाज को एक होने से दूर रखने में RC का सबसे बड़ा योगदान रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  3. विवेक सर आप सही कह रहे हैं अगर सभी संस्था के वरिष्ठों से पहले ही इस विषय पर चर्चा कर ली गई होती तो शायद चुनाव की नौबत नहीं आती और इस विवाद से बचा जा सकता था

    जवाब देंहटाएं

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